Thursday 14 February 2013

अरमां



ये अरमां छलनी-छलनी से
ये अरमां टूटे-फूटे से
ये अरमां बासी-बासी से
ये अरमां रूठे-रूठे से
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अरमां गड्डे के पानी से
 अरमां कर्कश वाणी से
अरमां झुर्रीदार बहुत
अरमां बूढ़ी नानी से
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ये अरमां कड़वी बात कहें
पूनम को अमावस रात कहें
ये अरमां जब भी मुंह खोले
नीम, करेला ही बोलें
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ये अरमां जाहिल-जाहिल से
बिना राह की मंजिल से
ये अरमां काले-काले से
मुंह में ज्यों खूनी छाले से
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इन अरमानों को दफन करो
कोई तो इन पर कफन धरो
अरमानों पर उपकार करो
अरमानों का संहार करो

Tuesday 29 January 2013

तुम्हारी याद



लो, अबकी फिर से भूल गए अपनी यादें साथ ले जाना
कितनी बार कहा था यादों का बैग छोड़ मत जाना
बहुत परेशान करती हैं  मुझे पीछे से...
तितलियों की मानिंद सारा दिन उड़ती रहती है  दिल के बागीचे में
जीवन-कुसुम पान करके फूलती जा रही हैं दिन-ब-दिन
हठी इतनी कि  हर वक्त उनकी ही सुनो..
कुछ भी तो नहीं करने देती मेरे मन का सा।
सुबह होते ही बैठ जाती हैं मेरे सिराहने
भगाने पर घुस जाती हैं रजाई के भीतर
और गुदगुदाती हैं देर तक...
डंडा लेकर भगाती हूं तो छिप जाती हैं यहां-वहां
सोचती हूं चलो अब कुछ देर को तो शांति मिली
तभी पीछे से आकर धौला देती हंै, कहती हैं धप्पा।
अब तो डरती भी नहीं आंखें  दिखाने पर
कुछ ज्यादा ही चढ़ गई हैं सिर
कल ही मेरे पैर के नीचे आते-आते रह गई वो याद
जब पहली बार रेस्टोरेंट में तुमने पकड़ा था मेरा हाथ
और कहा था, अच्छी लग रही हो...
अब बताओ कैसे संभालू यादों का ढेर
हर बार आते हो, दो-चार गट्ठर और बढ़ा जाते हो।
इस बार आओ तो बोर्डिंग का फॉर्म भी साथ लेते आना
यादों को कर देंगे एडमिट कुछेक साल के लिए....
या फिर बड़ा सा फ्रेम खरीद लेना
यादों की पेटिंग बनाकर टांग लेंगे उम्र की दीवार पर
अगर यह भी संभव न हो तो उन्हें बोरे में बंद करके
पटक देना टांड़ पर...
हर साल सफाई के दौरान बेच दिया करूंगी कबाड़ी को पुरानी यादें
अगर इतना भी न कर सको
तो चलना मेरे साथ सुनार के पास
कसौटी पर घिसकर बता देगा उनका मोल
सुनहरी यादों  को लड़ी में पिरो बनवा लूंगी नगमाला
या फिर ऐसा करना
कुछ मत करना
वक्त के साथ ये खुद-ब-खुद मैच्योर हो जाएंगी
जब इन्हें किसी अपने की याद सताएगी
अभी हमारे सहने के दिन हैं, इनके खुश रहने के दिन हैं
इनकीं आंखों में सपने हैं, अरमान हैं, हमारी यादें अभी-अभी हुईं जवान हैं...।

Wednesday 12 December 2012

तेरी कमी

सुबह रजाई में जब गर्मागर्म चाय का प्याला लेकर बैठती हूं 
पीती हूं पहला घूंट तब याद आता है, चीनी डालना भूल गई
फीकी चाय बेकार कर देती है सारा मजा 
खीझ सी होती है भुलक्कड़पन पर
ठीक वैसे ही है तेरी कमी
सब कुछ है फिर भी कुछ नहीं.....

Sunday 2 December 2012

अरी यशोदा



अरी यशोदा,
बहुत गुमान है न तुझे अपने आप पर
कि तू नटखट कन्हैया की मां है...
अरी यशोदा,
बहुत गुमान है न तुझे अपने बालक पर
कि तेरा लाल जग में सबसे न्यारा है...
तू अपनी जगह सही है,
तेरा लाल भी सही है.....
पर, एक बार कभी मेरी जगह लेकर देख
कभी अपने कलेजे के  टुकड़े से कह कि
वह मेरे बेटे की जगह लेकर देखे
सारा भ्रम मिट जाएगा...
मेरा लाल तेरे लाल की तरह चांद खिलौना नहीं मांगता
बस मांगता है तो एक चीज.....‘मम्मी आज आॅफिस मत जाओ’, आज दोनों खेलेंगे...।
तू सारा दिन अपने कान्हा के पीछे भागती है....
सारा दिन मेरा कान्हा मेरे पीछे भागता है...
तेरा लाल छुपता है कि कहीं उसकी मां न आ जाए
मैं अपने लाल से छुपती हूं कि कहीं मुझे जाता हुआ न देख ले..।
रात में जब तेरा लाल आंचल पकड़कर तेरे पीछे आता है
तो तू उसे लोरियां सुनाती है....
रात को 12 बजे मेरा लाल मेरे साथ खेलने की जिद करता है
तो मैं दिन भर की खीझ उस पर निकालती हूं...
मेरा लाल रोने लगता है..
‘मम्मी सॉरी, मम्मी सॉरी’ कहते हुए गोद में आ बैठता है
तब दोनों मिलकर रोते हैं...
वह समझता है मेरी मजबूरी
चुपचाप सो जाता है,
बस थोड़ा जिद्दी है....
पर गलती उसकी नहीं...
तेरे लाल जैसे लाल की कामना जो थी मुझे...
पर भूल गई थी कि मैं यशोदा नहीं...
भूल गई थी कि  मुझे आॅफिस भी जाना होता है...
भूल गई थी कि तेरी तरह मेरे पास सेवक-सेविकाएं नहीं
भूल गई थी कि मुझे रोटी बनाते समय
अपने लाल को गर्म चिमटे का भय दिखाना होगा
भूल गई थी कि तू....तू है और मैं....मैं हूं...
भूल गई थी कि मेरा लाल तेरे लाल की जगह नहीं ले सकता है।
अरी यशोदा
अब तो खुश होगी ना तू
कि तेरे जैसी मां दूसरी कोई नहीं
अरी यशोदा
अब तो बलैया ले रही होगी अपने कान्हा की
कि तेरे लाल जैसा किसी का लाल नहीं...।

Monday 17 September 2012

यादों ने सेंध लगाई होगी



डाल-डाल आंखों में डेरा,
नींद भी जब अलसाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे,
यादों ने सेंध लगाई होगी।

सोचा होगा कुछ देर तलक
 फिर धीरे से मुस्काए होगे,
खोल पोटली बातों की
सब किस्से दोहराए होगे
गीले तकिए पर बदल के करवट
फिर तुमने ली जम्हाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी.....

मुझको याद किया होगा
तकिया बाहों में भींचा होगा,
अश्क भरे नयनों को तुमने
कई दफा मींचा होगा,
तुम्हें चिढ़ाकर बार-बार
मेरी फोटो इतरायी होगी,
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी

आंखें उनींदी भारी होंगी
थकी-थकी बेचारी होंगी
कह देती होंगी राज सभी
तुमने लाख संवारी होंगी
लोगों ने हाल जो पूछा होगा
तुमने बात बनाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी

जब झुंझलाकर, गुस्से में आकर
यादों का मैला फेंका होगा
तब मन बंजारा रोया सा,
कुछ बहका सा, कुछ चहका होगा
खिड़की से उड़कर आई कतरन
तुमने फ्रेम कराई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी......

संपूर्ण


क्या यही है तुम्हारा पौरुष,
यही है हकीकत...
इसी दर्प में जी रहे हो तुम
कि हर रात जीतते हो तुम
हार जाती हूं मैं
फिर सुकून भर नींद लेते हो तुम
सिसकती हूं मैं...
जीतना मैं भी चाहती हूं
सुकून भरी नींद मेरी आंखों को भी प्यारी है
लेकिन, फर्क है तुम्हारी जीत और मेरी जीत में...
घंटो निहारना चाहती हूं तुम्हें
एक निश्छल बच्चे की तरह
सुनाना चाहती हूं दिन भर की बातें,
नहीं चाहिए मुझे जड़ाऊ गहने,
बस एक बार..बस एक बार प्यार से मुस्कुरा दो
मेरी किसी नाराजी पर..
आॅफिस से लौटते में
कभी लेते आओ महकता गजरा
फिर कैसी खुमारी से भर उठेगा
तन और मन।
अब तक आधा पूर्ण किया है तुमने मुझे
संपूर्णता की परिधि में तन के साथ मन भी शामिल है..
जीत जाने दो मुझे भी
हो जाने दो मुझे भी पूर्ण
आखिर मेरी पूर्णता बिना तुम संपूर्ण कहां?
तुम्हारा अस्तित्व मुझसे ही तो है
क्योंकि मैं सिर्फ पत्नी नहीं हूं तुम्हारी
अर्धांगिनी हूं, नारी हूं, रचयिता हूं।