Monday 17 September 2012

यादों ने सेंध लगाई होगी



डाल-डाल आंखों में डेरा,
नींद भी जब अलसाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे,
यादों ने सेंध लगाई होगी।

सोचा होगा कुछ देर तलक
 फिर धीरे से मुस्काए होगे,
खोल पोटली बातों की
सब किस्से दोहराए होगे
गीले तकिए पर बदल के करवट
फिर तुमने ली जम्हाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी.....

मुझको याद किया होगा
तकिया बाहों में भींचा होगा,
अश्क भरे नयनों को तुमने
कई दफा मींचा होगा,
तुम्हें चिढ़ाकर बार-बार
मेरी फोटो इतरायी होगी,
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी

आंखें उनींदी भारी होंगी
थकी-थकी बेचारी होंगी
कह देती होंगी राज सभी
तुमने लाख संवारी होंगी
लोगों ने हाल जो पूछा होगा
तुमने बात बनाई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी

जब झुंझलाकर, गुस्से में आकर
यादों का मैला फेंका होगा
तब मन बंजारा रोया सा,
कुछ बहका सा, कुछ चहका होगा
खिड़की से उड़कर आई कतरन
तुमने फ्रेम कराई होगी
उस रात बहुत तुम रोए होगे
यादों ने सेंध लगाई होगी......

संपूर्ण


क्या यही है तुम्हारा पौरुष,
यही है हकीकत...
इसी दर्प में जी रहे हो तुम
कि हर रात जीतते हो तुम
हार जाती हूं मैं
फिर सुकून भर नींद लेते हो तुम
सिसकती हूं मैं...
जीतना मैं भी चाहती हूं
सुकून भरी नींद मेरी आंखों को भी प्यारी है
लेकिन, फर्क है तुम्हारी जीत और मेरी जीत में...
घंटो निहारना चाहती हूं तुम्हें
एक निश्छल बच्चे की तरह
सुनाना चाहती हूं दिन भर की बातें,
नहीं चाहिए मुझे जड़ाऊ गहने,
बस एक बार..बस एक बार प्यार से मुस्कुरा दो
मेरी किसी नाराजी पर..
आॅफिस से लौटते में
कभी लेते आओ महकता गजरा
फिर कैसी खुमारी से भर उठेगा
तन और मन।
अब तक आधा पूर्ण किया है तुमने मुझे
संपूर्णता की परिधि में तन के साथ मन भी शामिल है..
जीत जाने दो मुझे भी
हो जाने दो मुझे भी पूर्ण
आखिर मेरी पूर्णता बिना तुम संपूर्ण कहां?
तुम्हारा अस्तित्व मुझसे ही तो है
क्योंकि मैं सिर्फ पत्नी नहीं हूं तुम्हारी
अर्धांगिनी हूं, नारी हूं, रचयिता हूं।